जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये

जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये आदमी को आदमी से जोड़िये   एक क़तरा भी नहीं है ख़ून का राष्ट्रीयता की देह को न निचोड़िये   स्वार्थ में उलझे हैं सारे रहनुमां इनपे अब विश्वास करना छोड़िये   घर में चटखे आइने रखते कहीं दूर जाकर फेंकिये या फोड़िये   इक छलावे से अधिक कुछ भी … Continue reading जितने पूजाघर हैं सबको तोड़िये